आस्ट्रेलियांचल एवं भारत-आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु द्वारा अंतरराष्ट्रीय हिंदी काव्य संध्या का धूमधाम से आयोजन



हिन्दी भाषा को समर्पित हिन्दी पखवाड़े 2024 के तहत आस्ट्रेलियांचल हिन्दी ई-पत्रिका एवं  भारत-आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु के साझा प्रयास से आभासी अंतरराष्ट्रीय हिंदी काव्य संध्या का आयोजन दिनांक 13 सितम्बर 2024 शुक्रवार को किया गया। कार्यक्रम में देश-विदेश के साहित्य मनीषियों ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं एवं हिन्दी के उत्थान पर किए जा रहे प्रयासों को साझा किया।

कार्यक्रम की शुरुआत सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए ऑस्ट्रेलियांचल पत्रिका की संपादक डॉ० भावना कुँअर ने सिडनी से की। भारत व अन्य देशों के कवि  लेखकों का परिचय भारत-ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु के संस्थापक श्री अनिल कुमार शर्मा ने दिया। 

कार्यक्रम का प्रारम्भ गुरुग्राम से सुप्रसिद्ध कवियित्री इन्दु "राज, निगम ने स्वयं की लिखी माँ सरस्वती की सुंदर आराधना से किया-

“लेखनी पर कृपा तुम हमारी करो

शारदे माँ तुम्हारा सहारा हमें।”


साहित्यिक संस्था परंपरा के संस्थापक और सुप्रसिद्ध कवि श्री राजेंद्र राज निगम ने अपना कवितापाठ करते हुए हिन्दी के प्रति अपने स्नेह को अपनी निम्न पंक्तियों द्वारा समर्पित किया जिसको सभी मंच पर आसीन कवियों एवं ऑनलाइन दर्शकों द्वारा बहुत सराहा गया-

“हमारे मन में समा गई हो, तुम्हें सुनेंगे, तुम्हें गुनेंगे

हमारी हिन्दी, ओ प्यारी हिन्दी, तुम्हें लिखेंगे, तुम्हें पढ़ेंगे”


साहित्यिक संस्था परंपरा की संरक्षक एवं सुप्रसिद्ध कवियित्री इन्दु "राज" निगम ने भी कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए हिन्दी को इस तरह से अपनी रचना द्वारा अपने मधुर स्वर में नमन् किया जिसे सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए-

“माथे पे जैसे बिन्दी, जैसे हो शिव का नन्दी

ज्यों कुम्भ या नवचंदी, ऐसी हमारी हिन्दी।”


ऑस्ट्रेलिया से ऑस्ट्रेलियांचल के सरंक्षक प्रगीत कुँअर ने हिन्दी को समर्पित स्वरचित दोहे सुनाते हुए निम्न दोहे से हिन्दी भाषा की सुंदरता को श्रोताओं तक पहुँचाया- 

“देवनागरी से हुआ, हिन्दी का जब मेल

काग़ज़ पर सजती गई, शब्द श्रृंखला बेल”


भारत-आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु के संस्थापक श्री अनिल शर्मा ने अपनी सशक्त रचना हिन्दी भाषा को समर्पित की- 

“मत करो हिन्दी हिन्दी, अभी तो मैं जुड़ी हुई हूँ जड़ों से बहुत मज़बूती के साथ कबीर के दोहों में सावन के मल्हारों में”


ऑस्ट्रेलियांचल हिन्दी ई-पत्रिका की संस्थापक, संपादक एवं ख्याति प्राप्त कवियित्री डॉ० भावना कुँअर ने स्वरचित गीत के माध्यम से प्रवासी मन से उभरे उद्गार मंच पर कुछ इस तरह प्रस्तुत किए-

“नया  देश  है, नया वेष है, नयी  यहाँ की   बोली है

पर कुदरत की दुनिया भर में, सजी  वही  रंगोली है”


भारत से जुड़ीं प्रसिद्ध रचनाकार डॉ० वनिता बाजपेई ने अपनी छोटी-छोटी सशक्त रचनाओं को प्रस्तुत किया और आज के परिवेश पर अपनी निम्न रचना प्रस्तुत की- 

“बीत गया है त्यौहार, ऊँघ रहा है बाज़ार”


भारत से ही जुड़े सुप्रसिद्ध कवि श्री भारत भूषण आर्य ने अपने दोहे और ग़ज़ल प्रस्तुत की जिसको मंच से बहुत सराहा गया-

“अगर ले जा सको मौसम वतन का साथ ले जाओ 

कहॉं परदेस का मौसम कलेजे से लगाता है “


ब्रज भाषा साहित्य को वृक्षाकार रूप देकर जन-जन तक पहुँचाने  वाले सुप्रसिद्ध कवि डॉ० ब्रज बिहारी लाल “बिरजु” जी ने ब्रज भाषा में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं जिनको मंच और श्रोताओं का भरपूर स्नेह मिला- 

“ब्रज में महिमा वन की न्यारी, जामें रास रचें बनवारी”


कार्यक्रम की मुख्य अतिथि, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सुप्रसिद्ध कवियित्री डॉ० शशि तिवारी ने अपनी मधुर रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता “शुक्रिया आँखों का” का पाठ किया और हिन्दी को समर्पित अपना सुंदर मुक्तक प्रस्तुत किया-

“अपने ह्रदय को प्रेम की तुला में तोलिए

मन में कोई जो गाँठ हो तो उसको खोलिए 

भारत में चाहे विश्व में कहीं भी जाएँ आप

हिन्दी में ही हिन्दी में ही हिन्दी में बोलिए”


कार्यक्रम के अध्यक्ष, सुप्रसिद्ध भाषाविद एवं अंतरराष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका “सौरभ पत्रिका” के संस्थापक, आकाशवाणी के उच्च पद से सेवानिवृत्त डॉ० हरिपाल सिंह जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में हिंदी के बारे में विस्तार से चर्चा की और हिन्दी भाषा पर किए जा रहे नवीन सुधारों से एवं हिन्दी को विश्व की विशिष्ट भाषाओं की सूची में स्थान देने के लिए किए जा रहे प्रयासों से श्रोताओं को अवगत कराया। साथ ही उन्होंने ब्रज भाषा एवं हिन्दी में स्वरचित रचनाएँ पढ़ीं-

“कीकर का काँटा जब आता है 

पाँव के नीचे चुभकर तिलमिला देता है”


कार्यक्रम के अंत में अपने धन्यवाद ज्ञापन में श्री अनिल शर्मा एवं डॉ० भावना कुँअर ने मंच पर उपस्थित कविगण एवं ऑनलाइन जुड़े सभी दर्शकों को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।

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