कई वर्षों तक उत्तर प्रदेश की सड़कों पर भीख मांगती मादा हथनी ज़ारा ने इस महीने अपनी आज़ादी के पाँच साल पूरे कर लिए है। पाँच साल पहले, 2020 में, वन्यजीव संरक्षण संस्था वाइल्डलाइफ़ एसओएस ने ज़ारा को बचाया और उसे दीर्घकालिक देखभाल के लिए मथुरा स्थित हाथी अस्पताल परिसर में लाया गया, जहाँ उसे नए सिरे से जीवन शुरू करने का मौक़ा मिला।
ज़ारा नामक मादा हथनी को कैद में क्रूर जीवन भोगना पड़ा जिसको सड़कों पर भीख मांगने वाली हथिनी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। जब उसे तपती डामर वाली सड़कों पर काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जाता था, तो उसे एक छोटे से क्षेत्र में बाँध दिया जाता था, जहाँ उसे स्वतंत्र रूप से घूमने या चलने के लिए बहुत कम जगह मिलती थी। गंभीर ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित हथनी को आवश्यक स्वास्थ्य सेवा नहीं मिल पाती थी, जिससे उसकी स्थिति और भी खराब हो जाती थी।
गंभीर स्थिति को देखते हुए, वाइल्डलाइफ एसओएस टीम ने 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उसे बचाया और मथुरा में भारत के पहले हाथी अस्पताल में लाए। पशु चिकित्सकों ने ज़ारा के शारीरिक स्वास्थ्य की गहन जांच की और पाया कि उसकी दाहिनी कोहनी का जोड़ क्षतिग्रस्त है, जिसे मेडिकल स्टाफ ने संभवतः बछड़े के रूप में गिरने से हुई गंभीर चोट के कारण फ्रैक्चर होने का कारण बताया। जब वह आई थी, तब वह शुरू में असहज थी, लेकिन आज ज़ारा स्वस्थ है और उसे बुज़ुर्ग नेत्रहीन हथनी आर्या के रूप में एक साथी मिला।
दोनों अक्सर एक साथ गतिविधियों में शामिल होते हैं, जैसे कि पूल में नहाना या स्प्रिंकलर के नीचे खड़े होना, जो गर्मियों के महीनों में देखभाल के तौर पर चालू किए जाते हैं। ज़ारा और आर्या को हाइड्रेटिंग फल और सब्ज़ियाँ जैसे चुकंदर, पपीता, तरबूज़ और सन मेलन दिए जाते हैं, जहाँ ज़ारा को तरबूज़ खाना बहुत पसंद है। फलों के प्रति उसके प्रेम को देखते हुए, टीम ने ज़ारा की 5वीं वर्षगांठ मनाने के लिए दलिया, चावल और फलों से बना एक विशेष केक बनाया जिसे उसने बड़े ही चाव से खाया।
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