साहिर के गानों - यह देश है वीर जवानों का और निगाहें मिलाने को जी चाहता है, पर झूमे श्रोता

आगरा । अमृत विद्या एजुकेशन फार इम्मोर्टालिटी  और छांव फाउंडेशन के तत्वधान में आयोजित  "सेलीबेरटिंग साहिर लुधियानवी (Celebrating Sahir Ludhianvi)"  संगीतमैय प्रोग्राम में हारमनी ग्रुप (के  श्री सुधीर नारायण और उनकी टीम) द्वारा साहिर लुधयानवी  के गानो की प्रस्थुती" शीरोज हैंग आउट कैफ़े में  दी गयी । सुधीर नारायण ने बताया के साहिर लुधयानवी पर आगरा में यह पहला प्रोग्राम है, उन्होंने और उनकी टीम ने सुंदर प्रस्तुति देने का प्रयास किया है. यह युवा गायककों की प्रस्तुति है. उनका मानना है , ऐसे प्रोग्राम आगरा में होने चाहिए, जिस से आज की पीढ़ी अपनी विरासत को जानेंगे.

युवा गायक सुश्री कृतिका  नारायण ने प्रोग्राम में साहिर लुधियानवी का परिचय दिया - उनकी रोमांटिक कविता नाजुक संवेदनशीलता और स्नेह की बारीकियों के प्रति गहरी जागरूकता से ओत-प्रोत है। "ये समा, समा है ये प्यार का" और "कभी कभी मेरे दिल में" जैसे गानों में साहिर ने सरल लेकिन गहन शब्दों के माध्यम से गहरी भावनाएं व्यक्त की हैं।साहिर का आत्मनिरीक्षण लेंस हमें अपनी भावनाओं की गहराई तक सोचने के लिए मजबूर करता है. 

साहिर लुधियानवी को  20वीं सदी के भारत के सबसे महान फिल्म गीतकार और कवियों में से एक माना जाता है। उनको दो बार फिल्मफेयर अवार्ड मिला- 1964 में "जो वादा किया" और 1977 में "कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है ". उनको 1971 में हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्मश्री से नवाज़ा गया था.

आगरा जोन के IG दीपक कुमार ने साहिर का परिचय देते हुए, कहा के साहिर २० सदी के प्रगतिशील शायर थे, और उन्होंने अपना मुकाम गीतों से बनाया. उनकी वजह से गानों के साथ गीतकार का भी नाम लिया जाने लगा.

आगरा से साहिर का  नाता अपनी प्रसिद्ध कविता "ताजमहल" के द्वारा रहा है, जिस में उन्होंने स्मारकों की भव्यता और उन्हें बनाने वाले आम लोगों की पीड़ा के बीच स्पष्ट अंतर की आलोचना की है- "ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल". 

जस्टिस मार्कंडेय काटजू बताते हैं के साहिर लुधियानवी  1969 में आगरा में  ग़ालिब की मृत्यु शताब्दी समारोह में शिरकत करते हुए उर्दू की दशा पर  प्रतिक्रिया देते हुए कहा था  - "ग़ालिब जिसे कहते हैं उर्दू का शायर था ,उर्दू पर सितम ढाह कर , ग़ालिब पर करम क्यूँ है".

अमृत विद्या एजुकेशन फार इम्मोर्टालिटी के सेक्रेटरी अनिल शर्मा ने कहा के - उनका यह गीत - "तू हिन्दू बनेगा ना मुसलमान बनेगा , मालिक ने है हर इन्सान को इंसान बनाया,हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया" आज भी याद किया जा रहा है.  

छांव फाउंडेशन के डायरेक्टर आशीष शुक्ला ने कहा - उनके गीत रोमांस के अंत को संप्रेषित करने में परिपक्व और प्रभावी थे. और जब रिश्ते का कोई मतलब न रह जाए और बोझ बन जाए तो उसे छोड़ देने का महत्व और जिन्दगी में आगे बढ़ा जाये- "चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों" 

पूरन डावर ने साहित्य की विरासत और युवाओं को आगे आने का आवाहन किया. उन्होंने कहा के वो युवाओं के उत्साह वर्धन के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. 

इस दौरान सुधीर नारायण,कृतिका नारायण, हर्षित पाठक, श्रेया शर्मा, ख़ुशी सोनी , गति सिंह, कार्तिक शर्मा, किशन शर्मा, अमन शर्मा, रिंकू चौरसिया , देशदीप शर्मा और इन गानों की प्रस्तुति दी।

आज के प्रोग्राम में आगरा जोन IG दीपक कुमार और उनकी पत्नी, पूरन डावर, डॉ आर सी शर्मा , वेड त्रिपाठी, प्रीति कुमारी,आशीष, अल्ताफ, समीर, गोपाल, इक़बाल, संजीव, दीपाली, col शिव कुंजुरु, असलम सलीमी, डॉ मधु भरद्वाज, डॉ एस के चंद्रा, विक्रम शुक्ला, विशाल झा, विजय शर्मा, मन्नू शर्मा, डॉ महेश धाकड़, अमित, पूनम, गुंजन, पुष्पेन्द्र, डॉ मुकुल पंडया , नव्या, कांति नेगी, हरी, वंदना, आदि उपस्थित रहे।


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