"मोहिनी पावस ऋतु का आगमन होने लगा है
बादलों के जल से मन का आचमन होने लगा है
शुष्क धरती झमाझम बारिश से तन को धो रही है
मोर के संग नाचने को सबका मन होने लगा है"..
माधुर्य सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था ने संस्कृति के उत्थान हेतु उठाया संकल्प के साथ
पावस ऋतु के आगमन पर भारतीय संस्कृति में ऋतुओं के महत्व पर परिचर्चा के साथ कवियों ने श्रावण मास की पहली काव्य गोष्ठी में किया स्वायत्त शाब्दिक परीक्षण...जिसमें संस्था कार्यालय पर कवियों ने भारतीय संस्कृति एवं कला को उन्नत करने का संकल्प लेते हुए एक अद्भुत प्रतियोगिता में भाग लिया।
संस्था अध्यक्ष निशिराज ने वरिष्ठ एवं युवा कवियों के मध्य एक त्वरित काव्य प्रतियोगिता का संयोजन किया। जिसमें बारिश से संबंधित शब्दों जैसे मोर, बादल, बिजली, हरियाली,बूंद, चातक,वर्षा,सावन,आदि शब्दों पर त्वरित कविता रचना प्रतियोगिता की गई। सभी कवियों ने कुछ शब्दों को लेकर उसी समय काव्य रचना कर काव्य पाठ किया। संस्था सचिव सुधा वर्मा ने सभी प्रतिभागियों के लिए उपहारों की व्यवस्था की।
संस्था संरक्षक डॉक्टर राजेंद्र मिलन ने धरती विषय पर,शीलेंद्र वशिष्ठ ने मौसम विषय पर,यशोयश ने बूंद विषय पर,विनय बंसल ने सावन, पद्मावती ने पिया ,सुधा वर्मा ने पंछी , इंदल सिंह इंदु ने बिजली पर,डॉक्टर राजीव शर्मा ने पपिहा, संगीता शर्मा ने कोयल एवं निशिराज ने झूला विषय पर केवल दस मिनट में काव्य रचना कर सबको चमत्कृत कर दिया।
सभी ने एकमत होकर आह्वान किया कि सभी रचनाधर्मियों को भविष्य में इस तरह के प्रयोग और प्रयोजन करने होंगे तभी हमारी संस्कृति और भारतीय परंपराओं से आत्मीय साक्षात्कार संभव हो सकेगा।
गोष्ठी का मधुर और कुशल संचालन संस्थाध्यक्ष निशिराज ने किया।
धन्यवाद ज्ञापित राजकुमार भाई ने किया
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