राहुल सिंह मिलन, आगरा

भारतीय संस्कृति में योग का योगदान आज से नहीं है, बल्कि प्राचीन पुस्तकों में योग का वर्णन मिलता है लेकिन फिर भी योग इससे पहले भी विद्यमान था, क्योंकि ऋषि परम्परा के कारण योग का ज्ञान मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा होगा। असल में योग शब्द का शाब्दिक अर्थ-जुड़ना या मिलना होता है लेकिन यह बहुत विस्तृत विज्ञान है क्योंकि इसके सभी कर्म और क्रियाएँ मनुष्य को शारीरिक और आत्मिक रूप से पूर्ण योगी बनाती हैं। आत्मा का परमात्मा से पूर्ण रूप से मिलन होना ही योग कहलाता है। आधुनिक जीवन में अगर निरोग और तंदरुस्त रहना चाहते है तो योग विश्व इतिहास का सबसे पुराना शारीरिक विज्ञान है, जिसने व्यक्ति के अध्यात्मिक और शारीरिक क्रियाकलापों के लिए नए द्वार खोले।
परन्तु आज की भागम भाग रफ्तार वाली जीवनशैली व्यक्ति को अपना ख्याल रखने ही कहां दे रही है, ये शैली ना तो व्यक्ति को ठीक से खाने देती है और ना ही ठीक से ख्याल रखने देती है। आज हर व्यक्ति बस अधिक पैसा कमाने और परिवार का भरण पोसण करने में लगा हुआ है। इस तरह से भागदौड़ वाली जिंदगी में हम दूसरे काम तो कर लेते हैं लेकिन हम अपना ख्याल सही नहीं रख पाते। स्वास्थ्य का ठीक तरह से ख्याल न रखने के कारण कई तरह की चीजें जन्म लेती हैं जैसे तनाव, थकान, चिड़चिड़ाहट, कई तरह की शारारिक बीमारिया आदि। इन सभी कारणों से हमारी जिंदगी अस्त-व्यस्त हो जाती है। ऐसे में जिंदगी को स्वस्थ तथा ऊर्जावान बनाये रखने के लिये व्यायाम की जरूरत होती है। लेकिन कठिन और थका देने वाली दो-ढाई घंटे लम्बी कसरत करना न किसी के पास समय है न हर किसी के बस की बात।
इसमें जहां कुछ लोग समय का अभाव दर्शाते हैं तो वहीं कुछ कहते है हम तो ठीक है हम क्यूं योग करें! तो कुछ लोग योग को धर्म और राजनीति से प्रेरित समझते हैं। परन्तु मानवता का सच ये है कि जहां स्वस्थ शरीर यानि निरोगी काया मन में शान्ति और सब जीवों के प्रति स्नेह की धारा बहती हो वहीं धर्म है।
योग से केवल शरीर ही स्वस्थ नहीं रहता बल्कि पिछले दिनों एक चौंकाने वाला ताजा अध्ययन था कि भारत में पिछले कुछ वर्षो में मानसिक रोगियां की संख्या में बढोत्तरी हुई है। लोग खुद को अकेला महसूस करते हैं, पारिवारिक दायित्वां की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं, पारिवारिक कलह और झगड़े बढ़ रहे हैं जिनका फायदा कुछ ढ़ोंगी बाबा, पाखंडी ज्योतिष के रूप में उठा रहे हैं इस सबका कारण हम लोगां की अपनी मूल परम्पराओं से भटकना बताया गया। किन्तु हमारे योग में इन सब समस्याओं का समाधान है जिसे हम यौगिक लाभ भी कह सकते हैं।
योग से इन्सान का बडे़ से बड़ शारीरिक कष्ट आने पर भी नहीं डरता, सबको सहन कर जाता है, उसे ऐसा सामर्थ्य प्राप्त होता है कि सदा सत्य ही बोलता है, अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहता है सदा घर-परिवार, समाज के संगठन की स्थापना चाहता है, विघटन को दूर करता है। माता-पिता और बडे़ बुर्जुगों की सेवा करता है। ऐसी पवित्रता प्राप्त होती है कि वह मद्यमांसादि का सेवन नहीं करता। सदा सात्विक भोजन ही स्वीकार करता है। मान-अपमान से विचलित नहीं होता है। सदा निष्काम कर्म करता है। मन और इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति प्राप्त होती है। इसलिए तन-मन और आत्मा में तालमेल बनाए रखने की हमारी प्राचीन विद्या योग का हमारी संस्कृति में एक विशेष स्थान है। योग से ही हमारे ऋषि मुनियां ने तन के सुक्ष्म अध्ययन के साथ-साथ मन और आत्मा का भी गहनता के साथ अध्ययन किया है तो आओ मिलकर संकल्प करें और योग को एकदिवसीय नहीं अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाये।
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